शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

"क्या हम सच में इतने अक्षम हैं कि दूसरों के लिए कुछ कर न पायें? ज़रूरत है बस लोगों का दर्द समझने की, उन्हें भी इंसान समझने की। क्या पता हमारा उठाया एक छोटा सा कदम एक नये युग की ही शुरुआत कर दे। बस एक दीपक जलाने की आवश्यकता होती है, फिर तो रौशनी अपने आप ही अंधकार मिटाने चल पड़ती है।"

मेरी एक कहानी......
http://hi.pratilipi.com/read?id=5896671406850048&ret=%2Fsandesh-nayak-swarn%2Fjindagi-dobara

बुधवार, 14 जनवरी 2015

मेरी कहानी **कल्लो और कबरू** का एक छोटा सा अंश 

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सोमवार, 5 जनवरी 2015

उन्होंने हमसे पूछा …
आप बड़े ख़ामोश रहते हैं,
क्या इस खामोशी में भी आप सुकूँ पाते हैं ?


हमने कहा…
अजी हम तो सिर्फ इसलिए ख़ामोशी की चादर में लिपटे हैं,
क्यूंकि सुना था कि ये लोग बेजुबाँ पे ज़ुल्म नहीं ढाते हैं। 

मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

ज़िंदगी को समझने के लिए, 
ज़िंदगी के पीछे न भागते रहिए,,
देखिये सारे नज़ारे इस जहाँ के, 
पर एकटक न ताकते रहिए,,
और खुलेंगे सारे राज़ आपके करीबी लोगों के,
बस इतना ख्याल रखना,,
जब वो समझें कि आप सो रहे हैं,
कसम से, बस उस वक़्त जागते रहिए ॥ 

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ

मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,
हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ ।

भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,
बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ ।

कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ ।

आ जाएगी अमन की दुल्हन मेरे वतन में,
इसी आस में उम्मीदों की घोड़ी चढ़ रहा हूँ ।

इंक़लाब के सफर में ज़ज़्बों की पोटली ले,
हिम्मत की तेज़ आती गाड़ी पकड़ रहा हूँ ।

बारिश सुकून-ए-राहत, बेवक़्त हो बेमौसम,,
यही आसमाँ को कहने शिद्दत से बढ़ रहा हूँ ।



सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

कुछ नहीं चाहिए

एक लड़की के पिता ने, बेटी की तय की सगाई,
पंडित को बुलाकर विवाह की तिथि  कराई। 
लड़की का पिता बोला,
आज से मेरी बेटी आपकी अमानत है,
आपने इसे अपनाया, ये आपकी इनायत है। 
लड़के का पिता फिर बड़े ही प्यार से बोला,
अपनी मनोकामनाओं का तब पिटारा खोला। 
हमे बहू मिल गई,बस और क्या चाहिए?
घर जाकर आप शादी की तैयारी कराइए। 
दहेज़ के नाम पर हम कुछ नहीं लेंगे,
वो आपकी इच्छा है कि आप क्या-क्या देंगे?
आप तो अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं,
उसके लिए पैसे की परवाह तक नहीं करते हैं। 
आप की इसी खूबी ने तो अपना दिल मिलाया है,
बड़े दिनों बाद ये सुनहरा मौका आया है। 
दस लाख रुपए तो आप तिलक में ही दे देंगे,
आप का दिल न टूटे,
इसलिए दिल कड़ा कर हम उन्हें रख लेंगे। 
टीवी,कूलर,फ्रिज तो आप उपहार में दे देना,
वाशिंग मशीन,मारुती के साथ बेटी की विदा करा देना। 
बस बरातियों का स्वागत आप जी भर के कराइए,
हमें तो दहेज़ से नफ़रत है, हमे कुछ नहीं चाहिए ॥


  

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

यूँ तो हम सभी के अंदर एक लेखक है लेकिन हम सब जीवन के ताने बाने में कुछ इस तरह उलझ जाते हैं की हमारे अंदर का वो लेखक गुमनामी में खो जाता है । किसी ने मुझसे कहा था की अगर लोग अपने विचार, अपने अनुभव, अपने साथ घटित हुई घटनाएँ, अपनी भावनाएं किसी दिन लिख के देखें तो शायद उन्हें, अपने अंदर छिपे उस लेखक पर यकीन हो जाये । इस प्रकृति में,इस सृष्टि में कुछ भी निरर्थक नहीं है । न ही कोई वस्तु न ही कोई प्राणी । हम सब के अंदर असीम संभावनाएं हैं, असीमित क्षमताएं हैं ।
                                     यहाँ मैंने लोगों से अपनी भावनाएं बांटने, उन तक अपने विचार पहुँचाने के लिए अपनी रचनाओं को माध्यम के रूप में चुना है । मेरी ये रचनाएँ एक सेतु हैं मेरे और मुझसे अनभिज्ञ लोगों के बीच । शायद अपने इस प्रयास से कुछ लोगों तक मेरे विचार सही मायने में पहुँच सकें, शायद कुछ को रहत मिल सके, शायद कुछ अच्छे बदलाव हो पाएं और सबसे बड़ी बात की मुझे बहुत कुछ सिखने को मिल सके ।
                                              सभी का हार्दिक अभिनन्दन ।