नौ महीने तक सींच रक्त से, जिसको कोख में पाला,,
आज उसी बेटे ने माँ को, अपने घर से निकाला।
जर्जर होती देह लिए, माँ ने बेटे को निहारा,,
मानो उसके जीने का अब, छूट रहा हो सहारा॥
भूल गया गीली रातें, जब रोता था चिल्लाता था,,
हाथ पैर निष्क्रिय थे तेरे, पड़े-पड़े झल्लाता था।
तब त्याग नींद! तेरी जगह लेट, सूखे में तुझे सुलाती थी,,
अपने सीने से लिपटा, बाँहों में तुझे झुलाती थी॥
भूल गया वो सूखे दिन, जब गर्मी से घबराता था,,
सन्नाटे की चादर ओढ़े, रात से जब डर जाता था।
तब आँचल से पंखा कर, खुद गर्मी में वो मरती थी,,
और ईश्वर की कथा सुना, डर तेरे दूर वो करती थी॥
भूल गया जब भूख से व्याकुल, होकर शोर मचाता था,,
खुद बारिश में भीगा करता, सेवा में माँ को नचाता था।
तब खुद भूखी रहकर, पूरी रोटी तुझे खिलाती थी,,
दिन भर करती काम, रात में लोरी तुझे सुनाती थी॥
भूल गया जब खेल-खेल में, चोटिल तू हो जाता था,,
और जब रोग से पीड़ित हो, फिर भावशून्य हो जाता था।
घबराकर तब तुझे चूम, वो मरहम तुझे लगाती थी,,
दवा पिला तेरा सिर सहला, आँखों में रात बिताती थी॥
तेरा जीवन भी क्या जीवन? ये सब उसका दान है,,
अपनी माँ का ह्रदय दुखाना, ईश्वर का अपमान है।
क्षम्य नहीं हो सकता पापी, तूने जो अपराध किया,,
अपनी माँ को तज तूने, अपने जीवन का नाश किया॥