मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

यूँ तो हम सभी के अंदर एक लेखक है लेकिन हम सब जीवन के ताने बाने में कुछ इस तरह उलझ जाते हैं की हमारे अंदर का वो लेखक गुमनामी में खो जाता है । किसी ने मुझसे कहा था की अगर लोग अपने विचार, अपने अनुभव, अपने साथ घटित हुई घटनाएँ, अपनी भावनाएं किसी दिन लिख के देखें तो शायद उन्हें, अपने अंदर छिपे उस लेखक पर यकीन हो जाये । इस प्रकृति में,इस सृष्टि में कुछ भी निरर्थक नहीं है । न ही कोई वस्तु न ही कोई प्राणी । हम सब के अंदर असीम संभावनाएं हैं, असीमित क्षमताएं हैं ।
                                     यहाँ मैंने लोगों से अपनी भावनाएं बांटने, उन तक अपने विचार पहुँचाने के लिए अपनी रचनाओं को माध्यम के रूप में चुना है । मेरी ये रचनाएँ एक सेतु हैं मेरे और मुझसे अनभिज्ञ लोगों के बीच । शायद अपने इस प्रयास से कुछ लोगों तक मेरे विचार सही मायने में पहुँच सकें, शायद कुछ को रहत मिल सके, शायद कुछ अच्छे बदलाव हो पाएं और सबसे बड़ी बात की मुझे बहुत कुछ सिखने को मिल सके ।
                                              सभी का हार्दिक अभिनन्दन । 

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